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उम्मीद,जज्बा और प्रयास पर खेल रहा सबसे ख़ास

by Niklesh Jain - 15/07/2019

14 जुलाई 2019 खेल की दुनिया से जुड़े रहने वाले खेलप्रेमियों के लिए हमेशा के लिए एक खास दिन बन गया । वैसे तो हर दिन दुनिया में कई बड़े मुक़ाबले होते रहते है पर कल जिस अंदाज में खेल अपने चरम पर पहुंचे उसने कल के दिन को हमेशा के लिए यादगार बना दिया । टेनिस और क्रिकेट की लोकप्रियता और दर्शक ज्यादा मुखर नजर आते है पर कल शतरंज के खेल नें भी विश्व को रोमांचित किया । यहाँ मेरा नजरिया एक शतरंज खिलाड़ी और विश्लेषक होने का है । और कल मुझे तीन अलग अलग खेलो नें कुछ इस कदर रोमांचित किया की मुझे लगा की हार जीत के परे एक खिलाड़ी होना और खेल से जुड़े होना ही अपने आप में एक बड़ी बात है । खेल आपको सिर्फ जीतना नहीं सिखाता खेल शालीनता से हार को स्वीकारना भी सिखाता है । खेल आपको मुश्किल से मुश्किल लम्हो में समहलना सिखाता है तो जीत के नजदीक जाकर हार से मुलाक़ात के लिए तैयार रहने को भी कहता है । तो आइये देखते है की शतरंज । टेनिस और क्रिकेट नें हमें कल किस कदर रोमांचित किया  



वैसे मेरे कल तीन पसंदीदा खिलाडी हार गए ! मतलब जिनका मैं समर्थन कर रहा था - पेंटला हरिकृष्णा , केन विलिम्सन और रोजर फेडरर

मेरे लिए वैसे तो कल का दिन बेहद सामान्य रहा पर दोपहर होते होते तीन बड़े खेल मुक़ाबले जैसे करीब आ रहे थे - फीडे ग्रांड प्रिक्स ,विश्व कप क्रिकेट फ़ाइनल और विंबलडन फ़ाइनल मुक़ाबला । सबसे पहले शुरू जब क्रिकेट विश्व कप फ़ाइनल शुरू हुआ तो भारत के फ़ाइनल में ना पहुँचने का गम मुझे कुछ इस तरह जहन में था की मैंने इस ओर ज्यादा ध्यान नहीं दिया और मैं शाम 5.30 बजे होने वाले भारत के पेंटला हरिकृष्णा और अमेरिका के वेसली सो के बीच होने वाले मुक़ाबले की तैयारी में जुट गया क्यूंकी मुझे हिन्दी चैनल पर सीधा प्रसारण करना था ।  

शतरंज - हरिकृष्णा की वेसली सो के हाथो हार !

शाम 6 बजे मैं हिंदी चेसबेस इंडिया चैनल पर लाइव विश्लेषण करने के लिए बैठ गया , भारत के हरिकृष्णा को फीडे ग्रैंड प्रिक्स के अगले चरण में प्रवेश करने के लिए अमेरिका के वेसली सो को पराजित करने की चुनौती थी दोनों नें खूब जोर लगाया चूकी पहले दोनों क्लासिकल मुक़ाबले ड्रॉ हो चुके थे ,रैपिड टाईब्रेक में हरि को हरहाल में जीतना था पर ऐसा नहीं हुआ । सबसे पहले मुक़ाबले में हरिकृष्णा नें अपना घोडा कुर्बान करते हुए गज़ब का साहस दिखाया और जीत के लिए अपना सब कुछ झोंक दिया । मैच चाल दर चाल रोमांचक होता गया पर 89 चाल तक चले इस मुक़ाबले मे अंत समय मे राजा की कुछ गलत चालों मे मैच हरि के हाथो से निकल गया और वेसली सो एक अंक की बढ़त पर आ गए । अगले राउंड मे वेसली सो नें हरि को कोई मौका नहीं दिया और 1.5-0.5 से जीतकर अगले राउंड मे जगह बना ली । एक भारतीय होने के नाते हरि की हार नें मुझे और निराश कर दिया पर उनके विश्व नंबर चार के समक्ष कुछ अलग हासिल करने जज्बे नें प्रभावित भी किया ।

सीख - इस मुकाबले से एक सीख मिली इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता सामने कौन है अगर आपने सम्पूर्ण प्रयास किया है हार और जीत दोनों स्वीकार होनी चाहिए !


टेनिस - जब रोजर जीत के करीब जाके भी नहीं जीत सके आवर जाकोविक हार के करीब जाकर भी जीत गए !

 

वैसे तो आमतौर पर मैं टेनिस नहीं देखता पर पिछले कुछ दिनो से मेरी जीवनसाथी एंजेला के खास लगाव के चलते हमने टेनिस देखना शुरू किया और खास तौर पर विंबलडन का नाम बचपन से समाचार पत्रो में पढ़ा है तो दूरदर्शन के हिन्दी समाचारो में कभी ना कभी टेनिस खिलाड़ियों की जानकारी मिलती रही है । दो दिन पहले ही हुए रोजर फेडरर और राफेल नडाल के मुक़ाबले नें मुझे वापस इस खेल से जोड़ने का काम किया और 37 वर्षीय फेडरर का शानदार खेल कुछ उसी तरह का सुकून देता है जैसे इस उम्र में सचिन तेंदुलकर का खेल था या फिर 49 वर्ष के विश्वनाथन आनंद का कमाल का जज्बा । 

यह एक ऐसा मुकाबला रहा, जिस टेनिस प्रेमी कभी भी दिल से नहीं निकाल पाएंगे. एक ऐसा मुकाबला जहां, जोकोविच ने दिल जीता, तो दिग्गज फेडरर ने दिल. अपने 37वें साल में गजब की टेनिस खेलते हुए फेडडर ने दिखाया कि उन्हें क्यों घास और विंबलडन का बादशाह कहा जाता है. चार घंटे और 55 मिनट तक चले इस मुकाबले ने फेडरर ने जोकोविच के पसीने छुड़ा कर रख दिए.

जोकोविक ने साल के तीसरे ग्रैंड स्लैम टूर्नामेंट में फेडरर को रोमांचक मुकाबले में 7-6 (7-5), 1-6, 7-6 (7-4), 4-6,13-12 (7-3) से मात दी. यह मैच चार घंटे 55 मिनट तक चला. ह जोकोविक का कुल 16 ग्रैंड स्लैम खिताब और पांचवां विंबलडन खिताब है. फेडरर 21वां ग्रैंड स्लैम और नौवां विंबलड़न खिताब जीतने से चूक गए

विंबलडन के आधिकारिक चैनल के सौजन्य से देखे खेल के मुख्य अंश

सीख - जोश जज्बा और जूनून किसी उम्र की मोहताज नहीं होती और दो चैंपियन जब खेले तो एक ही जीत सके पर खेल हमेशा जीतता है


जब क्रिकेट का रोमांच पहुंचा अपने चरम पर

भारत के विश्व कप से बाहर होने के साथ ही एक प्रकार से मेरा भी मन विश्व कप फ़ाइनल देखने के लिए कोई खास रोमांचित नहीं था और भारत की हार का दुख था सो अलग । बार बार धोनी के रन आउट का दृश्य आंखो के सामने आ जा रहा था और ऐसे मे मैंने सोचा किसे सपोर्ट किया जाये । अंग्रेज़ो को जिन्होने हमारे देश पर लंबे समय तक राज किया और इसे हर प्रकार से नुकशान पहुंचाया ( भले ही उनकी युवा पीढ़ी इसके लिए जिम्मेदार नहीं पर एक भारतीय के मन मे यह खटास तो रहेगी ही ) या फिर भारत को हराकर बाहर करने वाली न्यूज़ीलैंड । खैर मैंने सोचा चलो बेहतर करने वाली टीम को सपोर्ट करेंगे जो भी अच्छा खेले हाँ न्यूज़ीलैंड के कप्तान केन विलियमसन का चुकी मैं हमेशा से समर्थक रहा तो उनके जीतने पर ज्यादा खुश होता पर कल जैसे ही टेनिस का मुक़ाबला खत्म होने को था अचानक विश्व कप फ़ाइनल नें एक रोमांच की सारी हदें तोड़ दी

वर्ल्‍डकप 2019 का समापन ऐतिहासिक लार्ड्स मैदान पर रोमांचक फाइनल मुकाबले के साथ हुआ जिसमें न्‍यूजीलैंड के खिताब जीतने के सपने को चूर-चूर करते हुए इंग्‍लैंड ने सुपर ओवर में जीत हासिल कर पहली बार वर्ल्‍ड चैंपियन बनने का गौरव हासिल किया. दुर्भाग्‍य एक बार फिर न्‍यूजीलैंड और खिताब के बीच आड़े आ गया. कीवी टीम लगातार दूसरी बार वर्ल्‍डकप के फाइनल में पहुंची लेकिन खिताब एक बार फिर उससे कुछ दूर रह गया.( पढ़े क्रिकेट लेख NDTV पर )

अंतिम रोमांचक ओवर ICC के सौजन्य से  

सीख - खेल में हमेशा सबसे बेहतर नहीं जीतता बल्कि वह जीतता है जो सही समय पर सबसे बेहतर कर पाता है .

तो दोस्तों कुछ इस तरह से मैंने कल एक खिलाडी होने के एहसास का आनंद लिया और दरसल एक खिलाडी होना आपके जीवन को एक संतुलन देता है जो सामान्य तौर पर हासिल नहीं होता इसीलिए अपने बच्चे को जीवन में खिलाडी होने का प्रशिक्षण जरुर दीजिये ! क्यूंकि इससे वह जीवन में जो भी करेगा चाहे जो भी हो हार नहीं मानेगा !

 




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